एक नजर मेहतर बस्ती की ओर – कविता

विश्वजीत नास्तिक: रखा गया इन्हे कुछ इसतरह कि इन्हेपता ही न चलेवे किस नरक में जी रहे हैं। सरकारी कर्मचारी, ठेकेदारों, ज़मींदारों कीरोज़ सुनते ताना

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