होली के मौके पर एक अनूठी पहल: असल में ‘काले सफेद’ ही  जिंदगी में रंग भरते हैं

एन रघुरामन:  भारत के किसी भी हिस्से की तरह, 8 मार्च को इस गांव की फिजाओं में भी रंग होगा। ढोल की थाप गूंजेगी, हवा

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कैसे प्रोत्साहित करेंगे हम अपने क्षेत्र के युवाओं को?

इस उम्र में हम जो सोचते हैं और जो करते हैं, इसी से यह तय हो जाता है कि हमारी आगे की ज़िंदगी कैसी होने वाली है। हम जीवन में सफलता की ऊँचाइयों को छूएँगे या असफलता की गहरी खाइयों में गिरेंगे। हमारा भविष्य अमीरी की चमक से रौशन होगा या हम गरीबी के अंधियारों में रोते रहेंगे।

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आखिर ये झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोग आते कहाँ से हैं?

गोपाल लोधियाल:  सवाल यह है कि ये झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोग, आखिर कहाँ से आते हैं? क्या यह बारिश के साथ आसमान से टपकते

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संविधान हमारे लिए ज़रूरी हैं क्यूंकि संविधान से देश चलता है

महेश हेंब्रम:  संविधान हमारे लिए ज़रूरी हैं, संविधान से देश चलता है। संविधान गरीब वर्ग के लिए है। धर्म से देश नहीं चलता है। धर्म

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हिमाचल की तरह झारखंड भी क्या पर्यटन और जैविक खेती की बदौलत आगे नहीं बढ़ सकता?

दीपक रंजीत:  हिमाचल की तरफ आये हैं तो सोचे कि क्यों नहीं यहाँ के बारे में कुछ लिखा-पढ़ा जाए, जाना-समझा जाए। हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था

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उत्तराखंड की महिलाएँ और आत्मनिर्भरता की दिशा में उनके प्रयास

तरुण जोशी: महिलाएं उत्तराखंड की आर्थिकी की हमेशा से ही रीढ़ बनी रही हैं। यहाँ की आर्थिकी में किसी भी तरह के परिवर्तन का सबसे

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