शिवांशु: मेला, हाट, बाज़ार हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा रहे हैं। हम कहीं भी लगने वालों मेलों के ज़रिये वहाँ की संस्कृति, रीति-रिवाज़, सभी चीज़ों

युवाओं की दुनिया
शिवांशु: मेला, हाट, बाज़ार हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा रहे हैं। हम कहीं भी लगने वालों मेलों के ज़रिये वहाँ की संस्कृति, रीति-रिवाज़, सभी चीज़ों
पूनम कुमारी: मैं एक ऐसे परिवार से हूँ जहाँ हर एक चीज बहुत ही मुश्किल से मुकम्मल होती है। एक बार में कुछ मिल जाये
सहोदय के बच्चों ने अपने शब्दों और तरीके में अपने अनुभव, भावना, समझ, काम और यहाँ के माहौल के बारे में लिखे। स्कूल में टीचर
एलीन: एतवारी लगभग 30 साल की हो गई है। अपने गांव के देस से दूर दिल्ली शहर में एक सामाजिक संस्था के साथ काम करती
आशीष कुमार, अवध पीपल फॉरम, अयोध्या (फैज़ाबाद) (उत्तर प्रदेश) जब मैं 14 साल की उम्र का था तब मैं अपनी छत पर पतंग उड़ा रहा
कविता भील: यह तो आप सभी जानते हैं कि जाति क्या है। इस दुनिया में सभी व्यक्तियों की अलग-अलग जातियाँ होती हैं। वैसे तो जातियाँ