सेंधवा, म.प्र. की एक आदिवासी महिला मज़दूर की गाथा

शांता आर्य: जैसे ही खेतों में काम कम हो जाता है सुरमी बाई सोचने लगती है कि अब क्या काम करूँ? सेंधवा में कपास की

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बूढ़ा किसान और उसकी लाचारी

एम.जे. वास्कले: मेरे एक पड़ोसी हैं रामू, जो एक किसान हैं और अपनी पत्नी कमला के साथ रहते हैं। उन्हें मैं रामू काका और कमला

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