झालावाड़ के झिरी गाँव का मंथन स्कूल, जहाँ किसी के साथ भेदभाव नहीं होता

हमारे गाँव के सरकारी विद्यालय में समय पर अध्यापकों का नहीं आना, दलित और पिछड़े वर्ग के बच्चों के साथ जाति आधारित भेदभाव बहुत आम था और पढ़ाई का स्तर भी अच्छा नहीं था।

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अररिया ज़िले की आमगाछी पंचायत में सच्चाई पर एक नज़र

मेरे पापा ऐसी परिस्थिति से एकदम भी नही घबराते हैं। उनका हँसता हुआ चेहरा हम सभी को बहुत हिम्मत दे रहा है। सच्चाई को परेशान किया जा सकता है, लेकिन सच्चाई को मिटाया नही जा सकता।

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साहस की जीती जागती मिसाल है अररिया की मांडवी

जब मांडवी बीडीओ के दफ्तर पहुंची तो उसके स्टाफ ने कहा कि 1100 रुपए देंगी तो आपको जोड़ देंगे। यह सुनकर मांडवी बोली, “हम यहाँ बिकने के लिए नहीं आए हैं, जो करते हैं अपनी मर्ज़ी से करते हैं। हमें नहीं करनी आपकी नौकरी, हमें जो काम अच्छा लगेगा वही काम करेंगे।”  

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 संगठन निर्माण से ही होगा गाँवों में अंधविश्वास का खात्मा 

शंभू लाल भील:  राजस्थान के चित्तौड़गढ़ ज़िले के गाँव सजनपुरा की भील बस्ती में 38 वर्षीय आदिवासी भील जनजाति की महिला पारसी बाई भील को

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हमारे झिरी गाँव की महिलाओं को शिक्षा से मिला है नया आत्मविश्वास

बचपन में मैं सरकारी विद्यालय में पढ़ती थी तो वहाँ हमारे साथ जाति के आधार पर भेदभाव किया जाता था, अध्यापकों द्वारा भी और बच्चों द्वारा भी I

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अररिया के मज़दूर की मौत का ज़िम्मेदार कौन?

नरेश धड़कार एक गरीब घर से थे I वो एक कारीगर थे, जो रोज़ बांस की टोकरी और गर्मी के समय इस्तेमाल किया जाने वाला हाथ पंखा बनाकर बेचते थे और इसी से अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे।

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