मनीष आज़ाद: यह किताबों को कंठस्थ करने का समय हैक्योंकि किताबों को जलाने का आदेश कभी भी आ सकता हैतानाशाह को पता हैभविष्य जलाने के

युवाओं की दुनिया
मनीष आज़ाद: यह किताबों को कंठस्थ करने का समय हैक्योंकि किताबों को जलाने का आदेश कभी भी आ सकता हैतानाशाह को पता हैभविष्य जलाने के
संदीप कुमार: मुझे जो अ से ज्ञ तक आता है,उसका पूरा श्रेय मेरी मां को जाता है।मैंने जीवन में जो भी कामयाबी पाई हैहाँ मैंने
डॉ. नेरन्द्र दांभोळकर: मूर्तियाँ पूजने के बजायमैं मानव पूजता हूँकृत्रिम देवों को न मानकरमैं फूले-शाहू-अंबेडकर को पढ़ता हूँमैं छाती ठोककर कहता हूँमैं झूठ त्यागकर, नास्तिक
विश्वजीत नास्तिक: क्या हुआ आपको?क्या हुआ आपको?सत्ता के नशे मेंभूल गए वादे को गरीबी हटाएँगे,बेरोज़गारी हटाएँगे,युवाओं को नौकरियाँ देंगेंकंपनियाँ लगाएँगेहं सब भूल गएक्या हुआ आपको?सत्ता
ଜାକିଣ୍ଟା କେର୍କେଟା : ମା!ତୁ ଏମିତି ରାତିସାରାକାହିଁକି ଅପେକ୍ଷା କରୁଛୁ?ମହୁଲ ଫୁଲ ଗୁଡ଼ିକ ତଳେପଡ଼ିଲା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ!ଗଛରୁ ଛିଣ୍ଡାଇ ଆଣି ଦେଉନୁ! ପ୍ରଶ୍ନ ଶୁଣି ମା କହେ,ଇଏ ରାତି ସାରାଗର୍ଭ ରେ ରହେଜନ୍ମ ସମୟଉପନୀତ ହେଲେସ୍ଵତଃ
अनुवाद: गीत चतुर्वेदी ईरानी मज़दूर साबिर हका की कविताएँ तड़ित-प्रहार की तरह हैं। साबिर का जन्म 1986 में ईरान के करमानशाह में हुआ। अब वह