यह किताबों को कंठस्थ करने का समय है: कविता

मनीष आज़ाद: यह किताबों को कंठस्थ करने का समय हैक्योंकि किताबों को जलाने का आदेश कभी भी आ सकता हैतानाशाह को पता हैभविष्य जलाने के

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मैं झूठ त्यागकर नास्तिक हूँ – कविता 

डॉ. नेरन्द्र दांभोळकर: मूर्तियाँ पूजने के बजायमैं मानव पूजता हूँकृत्रिम देवों को न मानकरमैं फूले-शाहू-अंबेडकर को पढ़ता हूँमैं छाती ठोककर कहता हूँमैं झूठ त्यागकर, नास्तिक

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नेता जी क्या हुआ आपको – कविता

विश्वजीत नास्तिक: क्या हुआ आपको?क्या हुआ आपको?सत्ता के नशे मेंभूल गए वादे को गरीबी हटाएँगे,बेरोज़गारी हटाएँगे,युवाओं को नौकरियाँ देंगेंकंपनियाँ लगाएँगेहं सब भूल गएक्या हुआ आपको?सत्ता

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“ମୁଁ ମାଆ ଟେ” | क्यों महुआ तोड़े नहीं जाते पेड़ से?

ଜାକିଣ୍ଟା କେର୍କେଟା : ମା!ତୁ ଏମିତି ରାତିସାରାକାହିଁକି ଅପେକ୍ଷା କରୁଛୁ?ମହୁଲ ଫୁଲ ଗୁଡ଼ିକ ତଳେପଡ଼ିଲା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ!ଗଛରୁ ଛିଣ୍ଡାଇ ଆଣି ଦେଉନୁ! ପ୍ରଶ୍ନ ଶୁଣି ମା କହେ,ଇଏ ରାତି ସାରାଗର୍ଭ ରେ ରହେଜନ୍ମ ସମୟଉପନୀତ ହେଲେସ୍ଵତଃ

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अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर ईरानी मज़दूर साबिर हका की कविताएँ 

अनुवाद: गीत चतुर्वेदी  ईरानी मज़दूर साबिर हका की कविताएँ तड़ित-प्रहार की तरह हैं। साबिर का जन्‍म 1986 में ईरान के करमानशाह में हुआ। अब वह

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