नफ़रत के दौर में प्यार एक रस्सी है

नौशेरवां आदिल: न जलसों से न जुलूसों से,न दरगाह पर चादर फूल चढ़ाने से, पूजा से न आरती से,न भगवान को चुनरी चढ़ाने से, मोमबत्ती

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आओ, संग बैठे धरती आबा – कविता

वंदना टेटे: डेमटा की चटनीऔर छिलका रोटीलेकर हम बैठे हैं आबातुम्हारे साथ खाने के लिएआओ आओजब तक कि तीर बन रहे हैंटांगियों पर धार चढ़

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सिसकियाँ लगाती बदलाव की धारा – कविता

अभिषेक: मुझे अपने शादीशुदा दोस्तों के घर जाना,अच्छा नहीं लगता।इसलिए नहीं कि वो अब मेरे अच्छे दोस्त नहीं रहे,इसलिए भी नहीं कि शादी होते हीइंसान

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पहाड़ों में हैं गाँव सूने, तुम चले हो जश्न मनाने? – कविता

गोपाल लोधियाल: पहाड़ों में हैं गाँव सूने, तुम चले हो जश्न मनाने?जो पीड़ा थी तब हिया में, वही आज भी मेरे हिया में। 23 साल

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वजूद: कविता

ज्योति लकड़ा: आज भी याद है मुझे आजी की वो कहानियाँ जिनमें टंगे होतेपेड़ों पर प्राणयह जानते हुए भी ….कटते रहे पेड़कटते पेड़ों के साथ

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ये परीक्षा है, ज़िंदगी थोड़ी – कविता

गोपाल पटेल: ज़िंदगी हमारीइम्तिहान ले रही।सब्र हमाराधैर्य को परख रहा। वाज़िद होकर भी,इस डगर कोअपने आप हीसंभाल रहे हम… लक्षित राह परउलझनों भरीदास्तां के साथचल

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