नौशेरवां आदिल: न जलसों से न जुलूसों से,न दरगाह पर चादर फूल चढ़ाने से, पूजा से न आरती से,न भगवान को चुनरी चढ़ाने से, मोमबत्ती

युवाओं की दुनिया
नौशेरवां आदिल: न जलसों से न जुलूसों से,न दरगाह पर चादर फूल चढ़ाने से, पूजा से न आरती से,न भगवान को चुनरी चढ़ाने से, मोमबत्ती
वंदना टेटे: डेमटा की चटनीऔर छिलका रोटीलेकर हम बैठे हैं आबातुम्हारे साथ खाने के लिएआओ आओजब तक कि तीर बन रहे हैंटांगियों पर धार चढ़
अभिषेक: मुझे अपने शादीशुदा दोस्तों के घर जाना,अच्छा नहीं लगता।इसलिए नहीं कि वो अब मेरे अच्छे दोस्त नहीं रहे,इसलिए भी नहीं कि शादी होते हीइंसान
गोपाल लोधियाल: पहाड़ों में हैं गाँव सूने, तुम चले हो जश्न मनाने?जो पीड़ा थी तब हिया में, वही आज भी मेरे हिया में। 23 साल
ज्योति लकड़ा: आज भी याद है मुझे आजी की वो कहानियाँ जिनमें टंगे होतेपेड़ों पर प्राणयह जानते हुए भी ….कटते रहे पेड़कटते पेड़ों के साथ
गोपाल पटेल: ज़िंदगी हमारीइम्तिहान ले रही।सब्र हमाराधैर्य को परख रहा। वाज़िद होकर भी,इस डगर कोअपने आप हीसंभाल रहे हम… लक्षित राह परउलझनों भरीदास्तां के साथचल