महिलाविरोधी रूढ़ियों से तंग हैं महाराष्ट्र के ‘कंवर’ समाज की महिलाएं 

मनीषा शहारे:

हमारे समाज में हर समुदाय के लोग रहते हैं, हर समुदाय की अलग-अलग रूढ़ियाँ होती हैं, और पुराने लोगों से चली आती ये रूढ़ियाँ, आज भी कई परीवारों में दिख जाती हैं। ज़्यादातर ये आदिवासी समाज में दिखाई दे रही हैं। गाँव की लड़कियों से बात करते समय मासिक पाली (माहवारी या मासिक चक्र) के विषय पर चर्चा हुई तो समझ में आया कि, कई महिलाओं और लडकियों को जब मासिक पाली आती है तब उन्हें बाहर के हाल में सोने के लिए कहा जाता है। घर में किसी भी चीज़ को हाथ लगाने नहीं दिया जाता, खाना भी खाना है तो कोई और निकालकर देता है। अपनी मर्ज़ी से खाना भी निकालने नहीं देते और प्यास लग लगती है तो पानी भी निकालकर पीने नहीं देते। 

इस तरह कुपरंपराओं से कंवर समाज की लड़कियाँ परेशान हैं। आज तक भी महिलाओं को इस तरह की कुपंरापराओं से जूझना पड़ रहा है। लडकियों को लगता है कि हमें मासिक पाली आती है तो इसमें हमारी क्या  गलती है? हमने कौन सा गुनाह किया है? हमसे गैरों जैसा व्यवहार अपने ही परिवार के लोग करते हैं। 

दसवीं, बारहवीं में पढ़ाई करने के बाद बाहर पढ़ने नहीं भेजते हैं। अगर कोई अपनी मर्ज़ी से वर चुने और शादी कर ले तो उसे जायजाद से बेदखल कर दिया जाता है, और लड़का या लड़की के माँ-बाप को जुर्माना देना पड़ता है। पूरे गाँव के लोगों को खाना भी खिलना पड़ता है। अगर लड़का या लड़की के परिवार ने जुर्माना नहीं दिया तो उन्हें जात-बाहर कर देते हैं। ऐसे में यदि उसके घर में कोई प्रोग्राम हो तो भी समाज के लोग उनके घर में नहीं जाते। इनकी अलग ही  नियमावली है, और उनके नियम के अनुसार ही चलना पड़ता  है। ‘कंवर’ समाज के लोग लड़कियों और महिलाओं को मोबाइल भी चलाने नहीं देते।

महिला अपने पति का नाम भी नहीं लेती, अगर किसी ने गलती से भी नाम ले लिया तो भी उसे जुर्माना देना पड़ता है। ‘कंवर’ समाज में ऐसी रूढ़ियाँ और कुपरंपराएँ चली आ रही हैं, जाने कब तक महिलाओं को इनका सामना करना पड़ेगा? 

फीचर्ड फोटो प्रतीकात्मक है।

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  • मनीषा शहारे / Manisha Shahare

    मनीषा, महाराष्ट्र के गोंदिया ज़िले से हैं और सामाजिक परिवर्तन शाला से जुड़ी हैं। वह कष्टकारी जन आन्दोलन के साथ जुड़कर स्थानीय मुद्दों पर काम कर रही हैं।

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