सर्दियों में अब ना अम्मा की बुनाई दिखती है, न ऊन के गोले

अफ़ाक उल्लाह: मुझे आज भी याद है कि जैसे ही सर्दियाँ आती थी, हम लोग बड़े बक्से से अपने गर्म कपड़े, स्वेटर, टोपी, मफलर और

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क्या हम आज़ाद हो गए ?

विश्वजीत नास्तिक: एक ही दुनिया में कहीं सुबह है तो कहीं रात,कहीं विकसित देश है तो कहीं विकासशील राज्यकहीं सब चीजों से संपन्न शहर है

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शोषण और असमानता से भरे हमारे समाज में संविधान जरूरी है क्या ?

आलोक मौर्य: प्राचीन जंगल में शासकों ने स्वयं के कल्याण हेतु तथा आम जनता का शोषण करने के लिए विभिन्न प्रकार की विधियों का निर्माण

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आखिर ये झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोग आते कहाँ से हैं?

गोपाल लोधियाल:  सवाल यह है कि ये झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोग, आखिर कहाँ से आते हैं? क्या यह बारिश के साथ आसमान से टपकते

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संविधान हमारे लिए ज़रूरी हैं क्यूंकि संविधान से देश चलता है

महेश हेंब्रम:  संविधान हमारे लिए ज़रूरी हैं, संविधान से देश चलता है। संविधान गरीब वर्ग के लिए है। धर्म से देश नहीं चलता है। धर्म

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