पूनम कुमारी:
बिहार के अररिया ज़िले में एक गाँव के दलित समुदाय की लड़कीयों के बारे में लेखक ने इस लेख में लिखा है
भारतीय समाज सदियों से पुरुष प्रधान रहा हैं और आज भी महिलाओं के हालात वही है जैसा पहले हुआ करता था। हालांकि! आज महिलाएँ हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं और अपने उपर हुए अत्याचार के खिलाफ भी ज़ोरदार आवाज़ लगा रही हैं, परन्तु यह सब कदम कौन उठा रही हैं? क्या छोटे शहर या गाँव की महिला ऐसा कर पाती है? यहाँ पर हम गॉव के महिलाओं की स्थिति के बारे मे चर्चा करेंगे, उनके जन्म से लेकर बड़े होने तक…….. नन्ही सी होती हैं बेटियां। हर बच्चे की तरह जब उसका जन्म होने वाला होता है, तो उनके जन्म लेने के पहले से ही कहा जाता है कि बेटियां ना हो तो ही अच्छा हैं क्यूंकी बेटियां तो पराई होती हैं। बेटियां के जन्म से शायद ही कोई ख़ुश होता हो, अगर लड़के ने जन्म लिया तो उसे भविष्य का चिराग कहकर उसका स्वागत किया जाता है। लड़की जन्म हुई तो उसका दहेज़ की पोटली कहकर स्वागत किया जाता है।
जब लड़किया बड़ी हो जाती हैं तो उसका इस्तेमाल किसी वस्तु की तरह होने लगता है। बड़े होने के बाद उसे सिर्फ काम लेने और बात मानने वाले मशीन के रूप में देखा जाता है। सुरक्षा के नाम पर उसे अपने ही घर में कैद कर लिया जाता है। अगर किसी व्यक्ति की मर्ज़ी का कोई मतलब ना हो, जिसे अन्य लोगों की मर्ज़ी से हर काम करना हो, वो तो एक वस्तु ही हुई ना! जब लड़कियों की शादी होने वाली होती है तब भी उनकी उम्र का खयाल शायद ही रखा जाता है, ना ही विवाह में उनकी सहमती ली जाती है। घर वालों के पूछने पर अगर लड़कियाँ ख़ामोश रही तो उनकी ख़ामोशी को ही हाँ समझा जाता है और उनके हाथ पीले कर दिए जाते हैं।
लड़कियों के विरोध का कोई अधिकार नहीं होता। उसे बचपन से इतना डराया जाता है कि उन्हें आदत हो जाती है। सब सहने की इस वजह से लड़कियाँ आवाज़ उठाने की हिम्मत ही नहीं करती और सब खुशी-खुशी बर्दाश्त कर लेती हैं।
शादी होने के बाद उसे रसोई की नौकरानी से ज़्यादा कुछ और हक नहीं होते। उसकी ज़िंदगी बच्चों को संभालते हुए और सब की इच्छा पूर्ति करते-करते गुज़र जाती है। इन सब के बीच उनकी अपनी खुद की इच्छा कहा गुम हो जाती है, कोई नहीं जानता। अगर कभी महिलाएं कुछ कह दें, अपने पति का विरोध कर दे, तो उनकी बेइज्जती की जाती है साथ-साथ उनकी पिटाई भी की जाती है। कहा जाता है कि तुम्हारी औकात बस घर की रसोई तक है, घर से बाहर वाली बातें सोचने की तुम्हें कोई ज़रूरत नहीं है।
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