सुरेश डुडवे:
दूर से नारों की आवाज़ आ रही थी। किसानों को नियमानुसार बिजली देनी होगी… देनी होगी…,
आदिवासियों के साथ भेदभाव करना बंद करो…बंद करो … बंद करो।
लगभग हजार-बारह सौ लोग जिन में गाँव के किसान, पढ़े-लिखे युवक – युवतियाँ रैली में आगे बढ़ रहे थे। जैसे ही रैली बिजली विभाग के मैन गेट पर पहुँची, पुलिस ने भीड़ को देख गेट को बंद कर दिया। रैली के नेतृत्व कर रहे युवक ने कहा –‘आप ये गेट क्यों बंद कर रहे हैं? हम अपनी मांग लेकर बिजली अधिकारियों से मिलने आये हैं।’ कुछ देर पुलिस बल और लोगों में बहस हई। आखिरकर पुलिस बल को गेट खोलने पड़े। लोग बिजली विभाग के सामने जाकर बैठ गए और फिर से नारे लगाने लगे। किसानों को नियमानुसार बिजली देनी होगी… देनी होगी… आदिवासियों के साथ भेदभाव करना बंद करो…बंद करो…बंद करो…
अंदर बैठे बिजली विभाग के अधिकारी पहले इतनी सारी भीड़ को देखकर डर गए। लेकिन सभी लोगों द्वारा बताया गया कि हम शांतिपूर्ण रूप से अपनी मांगों को रखेंगे। फिर अधिकारी बाहर आया। नेतृत्व कर रहे युवक ने अधिकारी से पूछा – ‘आजादी के इतने सालों बाद भी कई आदिवासी गांवों में बिजली क्यों नहीं पहुँची?’
‘जिन गांवों में बिजली मिली है वहाँ नियमानुसार नहीं आती। हम आदिवासियों के साथ ऐसा भेदभाव क्यों? हमारी यहीं मांगे हैं कि जिन गांवों में बिजली नहीं है वहाँ बिजली पहुंचाई जाए। आदिवासियों के साथ बिजली देने में कोई भेदभाव न किया जाए।
अधिकारी ने सभी मांगों को सुनकर एक महीने में सभी समस्याओं का निराकरण करने का आश्वासन दिया। युवकों ने अधिकारी से कहा कि अगर एक माह में यह समस्या का हल नहीं हुआ तो हम इससे भी बड़ी संख्या में प्रदर्शन करेंगे। अब देखना है कि सरकारी अधिकारी के वायदों का क्या होता है?
Bahut achcha Likha
Ham Bhi Aapke vicharo se prerit h or aadivasi samaj k liye seva krenge