सुरेश डुडवे:

बारेला समाज, मध्यप्रदेश के बड़वानी, खरगोन, धार एवं झाबुआ जिलों में मुख्यत: निवास करता है। माना जाता है कि भील से ही भिलाला व बारेला समाज बना है। बारेला, भिलाला व भील समाज की भाषा एवं महिला-पुरूषों के पहनावे में थोड़ा-बहुत अंतर देखने को मिलता है। हालांकि इनकी भाषाओं में समानताएं अधिक हैं, जिसके कारण ये आपस में एक – दूसरे की भाषा आसानी से समझ सकते हैं।

आदिवासियों के कई समुदायों में पुरुष सत्ता स्थापित है। जिसके कारण महिलाओं को पुरुष की अपेक्षा कम स्वतंत्रता मिलती है। हालांकि अधिकतर आदिवासी समुदायों में स्त्री-पुरूष में समानता दिखाई देती है। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि आदिवासी समुदाय में महिलाओं की कोई समस्या नहीं है।

सामाजिक स्थिति: बारेला समाज भी पुरुषसत्तात्मक समाज बनने की राह पर चल पड़ा है, क्योंकि इस समाज में भी महिलाओं के साथ कई सारे भेदभाव देखने को मिलते हैं। महिलाओं को कई अधिकारों से वंचित किया गया है। जैसे:

निर्णय लेने के अधिकार नहीं: बारेला समाज का पुरुष वर्ग अधिकतर निर्णय स्वयं ही लेता है। ग्राम सभाओं में महिलाएं लगभग ना के बराबर होती हैं। और अगर हो तो भी निर्णय पुरुषों द्वारा ही लिया जाता है। इसी प्रकार गाँव के लिए किए जाने वाले अन्य निर्णयों में भी पुरुषों द्वारा ही निर्णय लिया जाता है। कुछ समय पूर्व तक कई चीजों में जैसे बीज बोने, खरीदने, बेचने में बारेला समाज की महिला-पुरुषों की भागीदारी समान रूप से देखने को मिलती थी, किंतु कुछ समय से देखने में आ रहा है कि पुरुष वर्ग ही अधिकतर निर्णय लेने लगा है जो कि समाज के लिए चिंतनीय है।

संपत्ति का अधिकार नहीं- बारेला समाज में पत्नी को उसके पति व लड़की को पिता की संपत्ति में अधिकार नहीं दिया जाता। हालांकि कुछ जगह महिलाओं के नाम पर भी जमीनें की जा रही हैं।

घूंघट प्रथा– बारेला समाज में महिलाओं द्वारा अपने पति से बड़े व्यक्ति को देखकर, घूंघट करना प्रचलन में है। अब यहां सवाल आता है कि आखिर बारेला समाज में घूंघट का प्रचलन कब से चला आ रहा है? क्या घूंघट से महिलाओं को कोई समस्या होती है? क्या वे बदलाव लाना चाहती हैं? या घूंघट प्रथा को सम्मान का प्रतीक मानकर चलते रहना चाहिए? आशा है कि इस मुद्दे पर आदिवासी बारेला समाज की महिलाएं चर्चा करेंगी।  

राजनीतिक स्थिति: बारेला समाज में महिला सरपंच के सारे काम उसका पति ही करता है, यहां तक कि पंचायत में भी निर्णय लेने का कार्य उसका पति ही करता है, जैसे कि वही सरपंच हो। लोग भी उसे ही सरपंच मान लेते हैं। इसमें कहीं न कहीं पुरुष मानसिकता हावी दिखाई देती है। बारेला समाज के पुरुषों को महिलाओं की भागीदारी बढ़ानी होगी।

महिला-पुरुष की समानताएँ- बारेला समाज की महिलाओं की कई सारी समस्याओं, भेदभावों के बावजूद समाज में महिला-पुरुष की समानताएँ भी देखने को मिलती हैं। उनको अधिकार मिले हुए हैं। 

लड़कियों को भी पढ़ाया जा रहा है- बारेला समाज की ये अच्छी बात है कि वे अपने बेटे की तरह बेटियों को भी पढ़ा रहे हैं। वो चाहते हैं कि उनकी बेटी भी अच्छी शिक्षा ग्रहण कर अच्छा जीवन जी सके। 

अगर पति परेशान करता है तो दूसरी शादी करने का अधिकार – बारेला समाज की लड़की की शादी एक बार कहीं हो जाती है और यदि उसका पति शराबी निकला या उसे प्रताड़ित करता है तो वह उसे छोड़कर  अपने घर आ सकती हैं और वह दूसरी शादी भी कर सकती है।

दहेज के कारण किसी की हत्या नहीं होती- आज खुद को सुसंस्कृत समझने वाले समाज में दहेज के कारण स्त्रियों को यातनाएँ दी जाती हैं। बहुओं को जिंदा जला देना या उन्हें इस प्रकार का कष्ट देना जिससे वह आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाए। इस प्रकार की घटनाएँ हम अक्सर सुनते रहते हैं। परंतु आदिवासी समाज में किसी बहू की दहेज या अन्य किसी कारण से हत्या नहीं की जाती। यदि उसे पति या सास- ससुर अधिक सताते या प्रताड़ित करते हैं, तो वह उस पति को छोड़कर दूसरी शादी करने के लिए स्वतंत्र होती है।

विधवा विवाह: बारेला समाज कि यदि कोई महिला विधवा हो जाती है, तो समाज उसे दूसरा विवाह करने की अनुमति देता है।

भ्रूण हत्या नहीं – मैंने अपने अब तक जीवन में किसी भी बारेला समाज में भ्रूण हत्या के बारे में नहीं सुना। लड़कियों को भी लड़कों की तरह सम्मान व प्यार मिलता है।

वर्तमान में पनपने वाली समस्याएं

आत्महत्या– आदिवासी समाज कभी आत्महत्या नहीं करता था। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से लड़की ने जहर पी लिया, लड़का-लड़की फांसी पर झूल गए जैसी घटनाएं देखने व सुनने में आ रही हैं, जो कि आदिवासी समाज के लिए चिंताजनक है। समाज को समझने की आवश्यकता है कि आखिर आदिवासी युवक-युवतियों पर किसका प्रभाव पड़ रहा है, जिससे कि वे इस प्रकार का कृत्य कर रहे हैं। और इस प्रकार की घटनाएँ पुन: न हो इसके लिए जागरूकता की आवश्यकता है। समय के साथ बारेला आदिवासी समाज में भी बाहरी दुनिया का प्रभाव पड़ रहा है। जिस कारण से समाज में महिलाओं के साथ भेदभाव, शोषण होने लगा है। बारेला समाज के लोगों से यही आशा है कि अपने समाज में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव को रोका जाए।

Author

  • सुरेश / Suresh D.

    सुरेश, मध्य प्रदेश के बड़वानी ज़िले से हैं। आधारशिला शिक्षण केंद्र के पूर्व छात्र रह चुके सुरेश अभी तमिल नाडू सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रहे हैं।

4 responses to “बारेला समाज की महिलाओं का जीवन”

  1. Suresh Avatar
    Suresh

    Good jay aadivashi suresh

  2. Gopal Avatar
    Gopal

    आदरणीय सुरेश सर आपने जनजातीय समाज के विशेषकर बारेला जनजाति के संदर्भ में आपने बखूबी अपनी लेखनी को प्रस्तुत किया वर्तमान में आदिवासी समाज की जो कुप्रथाएं है उनको आने वाली पीढ़ी के समक्ष प्रस्तुत करना कुछ प्रथाएं हमारे लिए परंपरा बन कर रह गई लेकिन हमें वर्तमान की प्रासंगिकता को देखते हुए इस में परिवर्तन लाने की जरूरत है। समाज में नव चेतना को जागृत करना है तो हम जैसे युवाओं को ही आगे आना पड़ेगा। आपकी लेखनी काफी उल्लेखनीय है आपको तहे दिल से शुक्रगुजार हूं आगे भी इस तरह के लेख प्रस्तुत करिए। 🙏

  3. Yuvaniya Avatar

    आशा है समाज का नेतृत्व करने वाले लोग इसे पढ़ेंगे, विशेषकर महिलाएं और इस विषय पर गंभीर चिंतन करेंगे। आजकल आदिवासियों के मुंह से उनके समाज की समस्याओं का उल्लेख बहुत कम सुनने को मिलता है। अच्छा लगा यह लेख।

  4. Kailash Dawar Avatar
    Kailash Dawar

    भैया आपने बारेला समाज की सभी स्थिति पर बखूबी बताया है और कई जायज सवाल भी किए। मैं भी बारेला समाज से आता हूं। आपने बारेला समाज के घूंघट अथवा पर्दा प्रथा के बारे में कई प्रश्न किए हैं। घूंघट प्रथा पर मैं भी अपनी क्षमतानुसार बताने का यथासंभव प्रयास करूंगा। यह प्रथा हजारों सालों पहले धीरे – धीरे अस्तित्व में आई होगी। समाज के वरिष्ठ और महानुभवी लोगों द्वारा समाज में नई – नवेली दुल्हन की सामाजिक स्थिति के साथ ही घूंघट प्रथा को को अस्तित्व में लाए होंगे। अपने पति से उम्र में बड़े लोग पहले से ही अधिकांश वैवाहिक जीवन जी रहे होते हैं और वे समाज की सभी दशाओं और स्थितियों से वाकिब होते हैं। विवाहित स्त्री के पति से उम्र में बड़े लोगों के सामने सम्मान के लिए और नैतिकता बनी रहें, इसलिए घूंघट करना जरूरी माना जाता हैं। और स्त्रियों को छोटे से ही सामाजिक और नैतिक मूल्यों के बारे में सिखाया जाता हैं और स्त्रियां पुरुष की तुलना में इनका पालन अच्छे से करती हैं। इसलिए अधिकांश स्त्रियां भी घूंघट प्रथा को त्यागना नहीं चाहती हैं। साथ ही यह आभास करती है कि उसे पुरुष की तुलना में अधिक स्वतंत्रता नहीं हैं। मेरे हिसाब से घूंघट प्रथा का प्रचलन खत्म होगा तो स्त्रियों को अधिक स्वतंत्रता मिलेगी और वो अपने व्यक्तित्व का अच्छे से विकास कर पायेगी और अपने प्रतिभाओं को सामने लाएगी साथ ही वह हर क्षेत्र में पुरुष का मुकाबला करेगी। लेकिन जहां इसका आंशिक दुष्परिणाम भी होंगे।

    धन्यवाद् सहित 🙏🙏

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