दयानंद बछा (ଦୟାନନ୍ଦ ବଛା):

ଯଦିଓ ଆଜି ପଙ୍କରେ ଫୁଟିଥିବା
ପଦ୍ମ ଟିଏ ପରି
ନିଭୃତ ଅରଣ୍ୟର କଣ୍ଟାବୁଦାରେ
ବଣ ମଲ୍ଲୀ ଟିଏ ଭଲି
ଫୁଟିଛି ଏଇ ଅଜ୍ଞାତ ବଣରେ
ମହକାଇବି ଦିନେ ସାରା ଦୁନିଆକୁ
ମୋର ସୁମଧୁର ବାସ୍ନାରେ….।

ସରଳ ଜୀବନ ଉଚ୍ଚ ଅଭିଳାଷ
ମୋର ଜୀବନର ଲକ୍ଷ୍ୟ
ଆଜି ବି ନାହିଁ କି କାଲି ବି ନଥିବ 
ମୋତେ ସମ୍ମାନର ମୋହ
କି ଅପମାନ୍ ର ଭୟ।

ଦୁଃଖି ରଙ୍କି ଙ୍କର ସେବା କରିବା
ହେଉ ଜୀବନର କର୍ମ
ନିଃସ୍ୱ ନିଷ୍ପେସିତ ଲୋକଙ୍କ ମୁହେଁ
ହସ ଫୁଟାଇବା ହେଉ ଧର୍ମ ।
ଚାହେ ନାହିଁ ପୃଥିବୀ ପୃଷ୍ଠର ସବୁ ସୁଖ ପାଇ
ବଞ୍ଚିବାକୁ ମୁଁ ବର୍ଷ ବର୍ଷ
ମୃତ୍ୟୁ ପୂର୍ବରୁ ନିଜ ଛବି ଛାଡିଯିବି
ଏହା ହିଁ ଜୀବନର ଆଦର୍ଶ।

हिन्दी अनुवाद

मेरे जीवन का आदर्श 

हालांकि, आज मैं कीचड़ में,   
खिल रहा कमल की तरह।
निभृत अरण्य की कंटीली झाड़ियों में,
एक वन मल्ली की तरह, 
खिल रहा हूँ इस अंजान जंगल में। 
महकाऊंगा एक दिन पूरी दुनिया को,
मेरी मीठी महक में। 

सरल जीवन की उच्च अभिलाषा,
मेरे जीवन का है लक्ष्य।
न आज है न कल होगा,
मुझे सम्मान का मोह,
न अपमान का भय।

दुःखी-दरिद्र की सेवा करना,
हो जाए मेरे जीवन का कर्म।
निःस्व, सर्वहारा के चेहरे में,
हंसी लाना मेरा धर्म।

चाह नहीं है मेरा इस धरती में, 
सभी सुख पाकर रहने के लिए बरसों-बरस,
मरने से पहले अपनी तस्वीर छोड़ दूंगा,
यही है जीवन का आदर्श, यही है जीवन का आदर्श।

निभृत- छिपा हुआ या गुप्त;
अरण्य- जंगल; 
मल्ली- फूल या पुष्प;
अभिलाष- चाह; 
निःस्व- अपनापन भूला हुआ व्यक्ति या निर्धन; 

फीचर्ड फोटो आभार: एनवाईटाइम्स

Author

  • दयानंद बछा / Dayanand Bachha

    दयानंद, ओडिशा के बालांगीर ज़िले से हैं। उन्होने बी.ए. की पढ़ाई की है और वर्तमान में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं।

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