उमेश्वर सिंह अर्मो:
यह कविता लेखक ने रक्षाबंधन के समय लिखी थी
आहत न होना बहन,
मैं दिल की खोल रहा हूँ..!
जय भीम मेरी बहन,
मैं तेरा भाई बोल रहा हूँ..!!
तेरा घर है तू सौ बार नहीं,
हज़ार बार आना..!
पर राखी बाँधने,
तू कल मत आना..!!
ढोंग पाखन्ड से,
मुँह मोड़ चुका हूँ..!
ब्राह्मणवादी परम्पराओं,
से नाता तोड़ चुका हूँ..!!
सरफरोशी जज्बा कौमी,
आदी हो गया है..!
तेरा भाई पक्का,
अम्बेडकरवादी हो गया है..!!
तेरी रक्षा सुरक्षा से,
मुझे ऐतराज़ नही है..!
मगर मेरा फर्ज किसी,
राखी का मोहताज नही है..!!
दु:ख-दर्द पीर सब
भारत, की नारी का ले गये..!
बाबा साहब तो बिन राखी के ही
सारे अधिकार दे गये..!!
बिगड़ा हुआ कल था,
वो आज बना दिया है..!
बाबा साहब ने हर नारी को
सरताज बना दिया है..!!
मेरा साथ दे और,
तू भी अपना रुख मोड़ ले..!
दूज दिवाली होली वगैरह ,
तू भी मनाना छोड़ दे..!!
नाराज न होना बहन मेरी,
परसों खुद लेने आऊंगा..!
प्रीत रीत फर्ज वर्ज,
राखी बिन भी सभी निभाऊंगा..!!
बाबा साहब का मान लो कहना
शिक्षित, संघर्षरत और संगठित रहना
हर नारी का है यही गहना
अंत में जय भीम – सेवा जोहार – जय सेवा – मेरी प्यारी बहना
(फीचर्ड फोटो प्रतीकात्मक है)