सही मज़दूरी और सम्मान के लिए संघर्षरत हैं देश की महिला घरेलू कामगार

श्रुति सोनकर:

अक्सर हम देखते है कि महिलाएं घर का सारा काम करने के साथ-साथ दूसरे के घरों में काम करके खुद पैसा भी कमाती हैं और अपने घर का खर्च चलाती हैं। घरों में काम करने वाली लड़कियों और महिलाओं के साथ अत्याचार और शोषण की बहुत सी घटनाएं हमें आजकल देखने-सुनने को मिल जाती है। शहरों में ज़्यादातर लोगों की आर्थिक स्थिति कमज़ोर होती है, जिसके चलते महिलाओं को भी काम करना पड़ता है। क्यूंकि ज़्यादातर महिलाएं शिक्षा से वंचित हैं और उन्हें ऐसा कोई कौशल भी नहीं आता है जिससे उन्हें रोज़गार मिल सके। इसके चलते वह घरेलू कार्य करने को मजबूर होती हैं। देश में बड़ी संख्या में घरेलू कामगार हैं, जिनमें ज़्यादातर महिलाएं हैं। 

सबसे चिंताजनक बात तो यह है कि इन्हें अभी तक कामगार का दर्जा भी नहीं दिया गया है। लोगों को लगता है कि खाना बनाना कोई मज़दूरी नहीं होती है, इसकी वजह से उनको ज़्यादा घंटे काम करना पड़ता है। काम का कोई निर्धारित समय नहीं होता है और ना ही मेहनताना निर्धारित होता है। उनकी मजबूरी का फायदा उठाते हुए, इन महिलाओं को कम पैसों में ज़्यादा काम करना पड़ता है और काम की सुरक्षा भी नहीं होती। और तो और जब मन आता है तो उनको काम से निकाल दिया जाता है। निकालने से पहले कोई नोटिस नहीं दिया जाता और छुट्टी लेने पर पैसा भी काटा जाता है। घरेलू कामगार महिलाओं को चोर की नज़र से भी देखा जाता है। घर में कोई भी चोरी होती है तो उन्हीं पर सबसे पहले शक किया जाता है, जबकि इन्ही महिलाओं की वजह से अधिकारी से लेकर बिज़नेसमैन लोग अपने ऑफिस समय से पहुंचते हैं। कभी-कभी घर के काम के साथ-साथ इन महिलाओं को उनकी सेवा भी करनी पड़ती है, जैसे हाथ-पैर दबाना, मालिश करना। 

घरेलू कामगार के काम को अन्य कामों की तरह नहीं देखा जाता है और समाज में उन्हें इज्जत भी नहीं दी जाती है। घरेलू कामगार को रोज़ बहुत मेहनत करनी पड़ती है, तब जाकर माह के अंत में उनको मेहनताना मिलता है। बीच में कोई दिक्कत आने पर, जैसे बीमार पड़ने पर भी वह छुट्टी नहीं कर सकती। इनकी दिनचर्या बहुत लंबी और थकाने वाली होती है। इन्हें सुबह अपने घर के साथ-साथ, दूसरों के घरों का काम करना पड़ता है, जिससे उन्हें शरीर में दर्द बना रहता है और वह अपने स्वास्थ्य का खयाल नहीं रख पाती हैं। समय के साथ कई महिलाएं गंभीर बीमारियों की चपेट में आ जाती हैं। 

घर के सब काम करने के बावजूद आज तक भी उनके साथ भेदभाव का व्यवहार हो रहा है। वह जिस घर में काम करती हैं वहां का खाना-पानी नहीं पी-खा सकती हैं। खाना बनाते समय कुछ खा नहीं सकती और वहां के शौचालय का इस्तेमाल तक नहीं कर सकती। खाना खराब बन जाने पर कभी-कभी तो उनको काम से निकाल भी दिया जाता है। होली-दिवाली जैसे त्योहारों के समय इन महिलाओं को घरों की पूरी धुलाई-सफाई करनी पड़ती है और खाने के तरह-तरह के पकवान भी बनाने पड़ते हैं। इस तरह के अतिरिक्त श्रम के लिए उनको कुछ पैसा भी अलग से नहीं मिलता है। घरेलू कामगार के घरों के आसपास रहने वाले उनको सम्मान की नज़र से नहीं देखते हैं। चिंताजनक तो यह भी है कि घरेलू कामगारों के बच्चे भी शिक्षा से वंचित हैं और वह भी कामगार बनने की तरफ बढ़ रहे हैं। ज़्यादातर किशोरियां कुपोषित हैं और एनीमिया की शिकार हैं। बहुत सी किशोरियों के साथ शारीरिक/यौन शोषण और हिंसा भी होती है और वह कुछ कर नहीं पाती है। 

यह चिंता का विषय है कि सरकार इस पर कोई कदम नहीं उठा रही है। पिछले लगभग 2 साल से हम कोरोना महामारी से लड़ रहे हैं, इस दौरान सबसे ज़्यादा घरेलू कामगार को परेशानियां हुई है। ज़्यादातर लोग कोरोना वायरस के डर से घरेलू कामगार को घर से निकाल दे रहे हैं। जो कुछ महिलाएं घर से नहा कर जाती हैं पर उन्हें अपने काम पर पहुँच कर भी दोबारा से नहाना पड़ता है, जिससे वह बीमार पड़ जाती हैं। सर्दी-खांसी-ज़ुखाम होने पर वह डर जाती हैं और मानसिक रूप से भी यह महिलाएं बीमार हो जाती हैं। बहुत से घरेलू कामगार लोगों का काम लॉकडाउन में छूट गया, इसके चलते वह बेरोज़गार हो गई हैं। बहुत से लोगों के घरों में खाने को भी कुछ नहीं था। घर खर्च कैसे चले यह उनके लिए एक सतत चिंता का विषय बन गया था। ऐसे में उनको कोरोना हो जाने पर वह ‘इतना पैसा कहां से आएगा कि इलाज करा सकें’, सोच कर भी अत्यधिक परेशान हैं। एक तो काम से निकाल दिए जाने का डर और दूसरा कोरोना वायरस का डर। 

मौजूदा समय में महिलाओं के लिए अवसर वैसे भी कम है। जैसे हालात अब बन रहे हैं उनसे तो महिलाएं हज़ारों साल विकास चक्र में पीछे चली जाएंगी। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार भारत में घरेलू कामगारों की संख्या लगभग 47 लाख है, जिनमें से 30 लाख महिलाएँ हैं, वहीं घरेलू कामगारों की संख्या का असल आंकड़ा अनुमानित रूप से 2 से 8 करोड़ के बीच है। इस बड़ी आबादी के लिए भारत की सरकार को बड़े कदम उठाने चाहिए जिससे उन्हें असुविधा ना हो। सरकार को घरेलू कामगार समुदाय के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा पर नई नीति बनानी चाहिए। घरेलू कामगार महिलाओं के बच्चे एक अच्छा जीवन जी सके, यह हम सब की ज़िम्मेदारी है।

फीचर्ड फोटो आभार – विकीमीडिया

Author

  • श्रुति सोनकर / Shruti Sonkar

    श्रुति, उत्तर प्रदेश के फैज़ाबाद ज़िले की रहने वाली हैं और बी.ए. (तीसरे साल) की छात्रा हैं। नई चीज़ों को जानने में दिलचस्पी रखने वाली श्रुति को स्टोरी बुक पढ़ना पसंद है और अलग-अलग जगहों पर जाकर वहां के रहन-सहन और लोगों के बारे में जानना अच्छा लगता है। साथ ही श्रुति ने अपने क्षेत्र और समुदाय की लड़कियों के साथ पढ़ाई, स्वास्थ्य और जेंडर समानता जैसे विषयों पर चर्चा करने की पहल भी शुरू की है।

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