मैं गांव हूं – एक कविता

गोपाल लोधियाल: मैं गांव हूं,  तुम चले गए थे मुझे छोड़कर, मुझे औने-पौने दाम में बेचकर। मैंने सदियों पाला था तुम्हें,  जब तुम गए कह

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सिंचाई हेतु पानी की अनुपलब्धता से पलायन को मजबूर बाशिंदे!

महेश मईडा: आए दिन मज़दूरों के साथ अन्याय, दुराचार, दुर्व्यवहार की खबरें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। इनमे सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाले

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हमें मज़बूत प्रजातंत्र तो चाहिए लेकिन मज़बूत बच्चे क्यों नहीं?

डा. गणेश माँझी: आज की परीक्षा का रद्द होना, कल के लिए बड़ी समस्या है। मानते हैं कि कोरोना बहुत बड़ी महामारी है, लेकिन ये

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मेरे शहर में भी एक मंदिर बना दो !

प्रशीक वानखेड़े: मेरे शहर में भी एक मंदिर बना दो, हर मुश्किल का समाधान वही हैं। नष्ट होती फसलों का,  किसानों के टूटते हौंसलों का,

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एक पेड़ ज़िंदगी के नाम

जतिलाल सोलंकी: बहुत पुराना है यह वट वृक्ष,घना जंगल था इसके आसपास। प्रातः काल सूर्य उदय के समय,गूंजती थी पक्षियों की आवाज।  कुछ साल पहले, बसते

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कसूर शराब बेचने वाले का या पीने वाले का – एक चर्चा

यह लेख नशाबंदी पर महात्मा गांधी के विचारों पर वरिष्ठ साथी अरविंद अंजुम की टिप्पणी और इस विषय पर युवा साथियों के बीच हुई चर्चा

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