दिनेश जाधव:

भाग्या खेती, खेती करने का एक तरीका है, जिसमें खेती में खाद, बीज, दवाइयों आदि सहित लगने वाला पूरा खर्चा खेत के मालिक द्वारा किया जाता है। भाग्या (खेत मज़दूर) को सिर्फ खेत में मेहनत करनी होती है, जिसके बदले में उसे फसल का एक चौथाई हिस्सा दिया जाता है। इस प्रकार की खेती को भाग्या खेती (कुछ इलाकों में इसे बटाई की खेती भी कहा जाता है और अंग्रेज़ी में शेयर क्रॉपिंग कहा जाता है) कहते हैं।  

मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले की राजपुर और बड़वानी तहसील में हमने एक सर्वे किया, इसमें पता चला कि इस क्षेत्र के अधिकतर लोग रोज़गार की तलाश में गुजरात पलायन करते हैं। लोगों से जानकारी मिली है कि गुजरात के बड़े किसान अपनी ज़मीन को दूसरे लोगों को खेती के लिए दे देते हैं।

भाग्या खेती करने के कारण
एफ़जीडी (फ़ोकस ग्रुप डिस्कशन) मीटिंग में हमने लोगों से कई प्रकार के प्रश्न किये। इनमें से एक सवाल था, “क्या फसल के चौथे हिस्से से आपका गुज़ारा हो जाता है?” अधिकतर लोगों ने जवाब दिया, “खेती के छोटे हिस्से से गुज़ारा नहीं हो पाता, लेकिन क्या करें कोई और विकल्प ही नहीं है। हम जब घर से निकलते हैं, तब साथ में परिवार होता है, इसलिए मज़दूरी करना मुश्किल होता है। यह इसलिए भी क्यूंकी मज़दूरी का काम स्थायी नहीं होता और एक जगह पर रह पाना संभव नहीं हो पता। कहीं-कहीं पर तो झोपड़ी बनाकर रहना भी मुश्किल हो जाता है, इसलिए इधर-उधर भटकने से बचने के लिए हम किसी बड़े किसान की खेती को भाग्या खेती के रूप में करने लगते हैं।” 

भाग्या खेती में दो विकल्प होते हैं – एक आपको किसी किसान से खेत लेकर केवल मेहनत करनी होती है, तब आपको फसल उत्पादन का ¼ एक चौथाई हिस्सा मिलता है। दूसरा यदि आप खेत-मालिक के साथ खेती में लगने वाले पूरे खर्च (खाद, बीज, दवाइयों आदि) का आधा खर्चा उठाते हैं, तो आपको फसल उत्पादन का आधा हिस्सा मिलता है। 

भाग्या खेती पर लोगों से चर्चा

गुजरात पलायन करने का कारण
खेती मज़दूर सर्वे से हमें पता चला है कि आदिवासी समाज का गुजरात में पलायन होने के कई कारण हैं जो इस प्रकार हैं – 

घटती जमीन – परिवार के बढ़ने के साथ धीरे-धीरे ज़मीन का बंटवारा किया जा रहा है। ज़मीन की मात्रा एक परिवार के पालन-पोषण के लिए पर्याप्त नहीं है। 

सयुंक्त परिवार – सयुंक्त परिवार होने के कारण घर की खेती को परिवार के कुछ लोग संभाल लेते हैं, परिवार के बाकी सदस्य खेती-मज़दूरी के लिए गुजरात पलायन कर रहे हैं।

कर्जा कुछ लोगों के पास बहुत कम ज़मीन होती हैं, और उसे भी कर्ज के दबाव में किसी के पास गिरवी रखना पड़ता है। ऐसे में जीवन-यापन के लिए उन्हें अन्य जगहों पर पलायन करना पड़ता है।

खेती से पैदावार की कमी – सर्वे से पता चला है कि नई पीढ़ी के युवाओं की सोच है कि घर की खेती की पैदावार लगातार कम हो रही है, उससे बेहतर है कि गुजरात या अन्य राज्यों में जाकर मज़दूरी या भाग्या खेती कर लें।

मजदूरों पर होने वाले अत्याचार

महिलाओं पर शोषण – खेती-मजदूरी सर्वे में जब हमने गाँवों में जाकर एफ़जीडी मीटिंग की, तो पता चला कि खेती मज़दूरी या भाग्या खेती के काम में महिलाओं का बहुत शोषण हो रहा है, और उनके लिए कोई आवाज़ नहीं उठा रहा है। कहीं-कहीं पर न्यूज़ से पता चला और सर्वे में भी लोगों ने बताया कि गुजरात के कई हिस्सों में मज़दूर पति/पत्नी की हत्या भी की गई है। कहीं पर महिलाओं और लड़कियों का रेप भी हो चुका है। महिला मज़दूरों पर इस प्रकार के अत्याचार कई जगहों पर हो रहे हैं। सर्वे से यह भी पता चला कि गुजरात में कहीं-कहीं खेडुत (खेत मालिक) की उम्र ज़्यादा हो जाने पर भी अगर उसकी शादी नहीं होती है, तो वह खेत-मज़दूर की जवान लड़की दिख जाने पर उससे शादी करने की मांग भी रख देते हैं या उसे लेकर भाग भी जाते हैं। हाल ही में ऐसा ही एक केस गुजरात में देखने को मिला जहां खेत-मालिक एक महिला को लेकर भाग गया था। 

खेत के मालिक का दुर्व्यवहार – सर्वे से पता चला है कि कहीं-कहीं पर खेत-मालिक, भाग्या का बहुत अधिक दमन करते हैं और उनके साथ गाली-गलोच के साथ-साथ मारपीट भी करते हैं। फसल पकने के समय पर इस प्रकार का बर्ताव अधिक किया जाता है, ऐसा क्यों होता होता है इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं। लेकिन जब हमने 20 गाँवों में खेती-मज़दूर व भाग्या खेती को लेकर सर्वे किया तो हमें इसके बहुत से कारणों का पता चला। 

  • मालिक फसल की अच्छी आवक देखकर भाग्या को उसका भाग देना नहीं चाहता, इस कारण उनका शोषण और दमन कर उन्हें खेत से भगा दिया जाता है। 
  • महिलाओं के साथ अक्सर की जाने वाली छेड़छाड़ का विरोध करने पर उनके साथ गाली-गलोच कर के उन्हें खेत से भगा दिया जाता है। 

इस तरह के कई कारण हैं, जिनकी वजह से आदिवासी अन्य राज्यों में पलायन कर रहे हैं। इन सबके बावजूद मैं नहीं मानता कि भाग्या, खेती का काम करने से इंकार कर दें, क्योंकि खेती में ज़्यादा से ज़्यादा हिस्सा मिलने की चाह में वह कठोर परिश्रम करते हैं। इस सर्वे के आधार पर कहा जा सकता है कि मौजूदा समय में मध्य प्रदेश के आदिवासी समुदाय कई सारी समस्याओं से घिरे हुए हैं। उन्हें अपनी आजीविका के लिए गुजरात, महाराष्ट्र जैसे राज्यों की ओर पलायन करना पड़ रहा है, जहां पर उन्हें बड़े स्तर पर शोषण और अन्याय का सामना करना पड़ता है।

Author

  • दिनेश / Dinesh J.

    दिनेश जाधव, मध्य प्रदेश के बड़वानी ज़िले से हैं। दिनेश ने अपनी पोस्ट-ग्रेजुएशन केमिस्ट्री में की है। वह पिछले कुछ वर्षों से आधारशिला शिक्षण केंद्र, साकड़, में अध्यापक के पद पर कार्यरत हैं।

One response to “बड़वानी में “भाग्या खेती” कर रहे खेत-मज़दूरों की चुनौतियां”

  1. Amit Bhatnagar Avatar
    Amit Bhatnagar

    अच्छा प्रयास है।आपके समाज की हालत के बारे में लिखते रहो। आशा है उर लेख पढ़ने को मिलेंगे।

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