जूहेब आज़ाद: मेरे कूड़ेदान में कुछ कागज़ के पन्ने उनमें बसे लफ़्ज़ मेरे तकलीख़* मेरी कुछ दर्द और मेरे सपने अधूरे —————————————– *तकलीख़ : रचना

युवाओं की दुनिया
जूहेब आज़ाद: मेरे कूड़ेदान में कुछ कागज़ के पन्ने उनमें बसे लफ़्ज़ मेरे तकलीख़* मेरी कुछ दर्द और मेरे सपने अधूरे —————————————– *तकलीख़ : रचना
नरेन्द्र लोहा: साथियों ज़िंदाबाद। शादी विवाह आज के समय में प्रतिस्पर्धा का बाज़ार बन चुका है और इससे बहुत सारे बेकार के खर्च और समय
साथियों आज हमारे देश में मज़दूरों की स्थिति बहुत ही खराब होती जा रही है। समाज में रहने वाले प्रत्येक नागरिक को स्वंय से यह
समाज में क्रांति कैसे आएगी, यह समाज का या हम सबका सबसे अहम मुद्दा है जो आसान नहीं है लेकिन असंभव भी नहीं है। समाज
केसर सिंह: सृष्टि के क्रमिक विकास यानि बदलाव से ही आज हम इंसान यहाँ इकट्ठे होकर एक दूसरे से मिल पा रहे हैं। संसार के
पंकज सेनानी: आज हमारे देश में किसानों पर बड़ा संकट छाया है, हम देख रहें है कि हमारे देश में किसान आत्महत्या की संख्या लगातार